नई दिल्ली, 15 नवंबर 2024 - भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, कोचिंग संस्थानों द्वारा किए जाने वाले गुमराह करने वाले विज्ञापनों को विनियमित करने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। यह नया नियमन संस्थानों को अपने विज्ञापनों में झूठे दावे जैसे कि '100% चयन' या '100% नौकरी की सुरक्षा' करने से रोकेगा और शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखता है।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा जारी इन दिशानिर्देशों के अनुसार, कोचिंग संस्थानों को अब विज्ञापनों में सफल छात्रों के नाम, तस्वीरें या टेस्टीमोनियल्स बिना उनकी लिखित स्वीकृति के इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा, इन संस्थानों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके विज्ञापनों में:
- पाठ्यक्रम की अवधि और शुल्क की संरचना सहित सभी महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा किया जाए।
- कोचिंग सेंटर की सफलता दर और चयन की संख्या के बारे में सत्यापन योग्य सबूत प्रदान किए जाएं।
- सफल छात्रों के द्वारा अपनाए गए पाठ्यक्रम का उल्लेख हो, जिसमें वह पाठ्यक्रम मुफ्त या भुगतानयोग्य था, क्योंकि अक्सर कोचिंग सेंटर्स ने छात्रों की सफलता के लिए केवल मॉक इंटरव्यू को जिम्मेदार ठहराया है।
उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया, "हमने देखा है कि कई कोचिंग संस्थान जानबूझकर छात्रों से महत्वपूर्ण जानकारी छुपाते हैं। इसलिए, हमने कोचिंग उद्योग में शामिल लोगों और उपभोक्ताओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए ये दिशानिर्देश जारी किए हैं। हमारा उद्देश्य संस्थानों के विज्ञापनों को प्रतिबंधित करना नहीं बल्कि उनके संचालन में पारदर्शिता लाना है।"
इस पहल के परिणामस्वरूप, कोचिंग संस्थानों को अगर इन दिशानिर्देशों का पालन नहीं करने पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत दंड का सामना करना पड़ सकता है। पहली बार उल्लंघन के लिए 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, जबकि बार-बार उल्लंघन करने पर जुर्माना 50 लाख रुपये तक बढ़ सकता है। इसके अलावा, CCPA ऐसे विज्ञापनों को वापस लेने और आगे की प्रकाशना पर रोक लगाने का आदेश भी दे सकता है।
इन नई गाइडलाइन्स को शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है, जो विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को उनके भविष्य की योजना बनाने में सही जानकारी देने में मदद करेगी। यह कदम कोचिंग संस्थानों के भ्रामक विज्ञापनों पर नकेल कसने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जिससे उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा हो सके।
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