पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में रविवार की सुबह शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा में तीन लोगों की मौत हुई है.
संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद एक तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हुई है, जिसमें स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने पुलिस और प्रशासन के व्यवहार की तीखी आलोचना की है। इस विवाद की क्रोनोलॉजी से पता चलता है कि कैसे एक विवादित प्रक्रिया ने सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाया है:
- याचिका दाखिल: वकील विष्णु जैन द्वारा जामा मस्जिद के खिलाफ मंदिर के दावे के साथ एक याचिका दाखिल की गई। जैन का इतिहास धार्मिक विवादों में शामिल होने का रहा है, जिसमें बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा ईदगाह, कुतुब मीनार, और ताज महल जैसे मामले शामिल हैं।
- त्वरित कोर्ट कार्रवाई: 22 नवंबर को दाखिल याचिका पर तत्काल सुनवाई करते हुए, जिला कोर्ट ने उसी दिन सर्वे का आदेश पारित कर दिया, जिसे कई लोगों ने असामान्य रूप से तेजी से की गई कार्रवाई के रूप में देखा।
- सर्वे टीम में याचिकाकर्ता: विष्णु जैन को सर्वे टीम का हिस्सा बनाए जाने का आदेश जारी हुआ, जो कि एक विवादास्पद निर्णय माना जा रहा है क्योंकि यह व्यक्तिगत रूप से हितों का टकराव दर्शाता है।
- रात्रि सर्वे: उपचुनाव से ठीक एक रात पहले, भारी पुलिस बल के साथ मस्जिद का सर्वे किया गया, जिसे समुदाय के बीच अशांति फैलाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
- हिंसक टकराव: सर्वे के दौरान और बाद में, स्थानीय लोगों ने पुलिस के व्यवहार का विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़े। इस स्थिति ने पथराव को भी जन्म दिया।
- सरकारी वकील की भूमिका: विष्णु जैन के याचिकाकर्ता होने के साथ-साथ सर्वे टीम में शामिल होने से, एक संवेदनशील मामले में सरकार की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।
निष्कर्ष:
इस पूरी घटना क्रम में, उपासना स्थल अधिनियम 1991 के बावजूद, जो धार्मिक स्थलों की स्थिति को 1947 के पहले की स्थिति में बनाए रखने की बात करता है, यहां तेजी से और संदिग्ध क्रियाएं देखने को मिली हैं। यूपी सरकार और पुलिस प्रशासन के व्यवहार को कई लोग राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित और सामाजिक सद्भाव के विपरीत मान रहे हैं।
- पुलिस का व्यवहार: पुलिस की कार्रवाई, जिसमें लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल शामिल है, को अनावश्यक रूप से कठोर और संवेदनशीलता की कमी के रूप में देखा जा रहा है।
- सरकार की भूमिका: सरकार की ओर से इस मामले में तेजी से कार्रवाई और एक विवादित सर्वे की अनुमति देने को साम्प्रदायिक सौहार्द के खिलाफ माना जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि यह सर्वेक्षण एक पूर्व-नियोजित षड्यंत्र का हिस्सा है, जो धार्मिक स्थलों को लेकर राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है।
इस घटना ने न केवल संभल के लोगों के बीच असुरक्षा की भावना पैदा की है, बल्कि इसने सरकारी संस्थाओं की निष्पक्षता और संवेदनशीलता पर भी सवाल खड़े किए हैं।